Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 818
________________ २३ कान और बाँधरता १. कान गुणीजनों के गुण एवं गुरुओं का ज्ञान सुनने के लिए हैं, स्वभयंता और परनिन्दा सुनने के लिए नहीं । २. बोला भी बोलता भी बोला, जो न सुण्यां गुरुज्ञान ! ३. कान में टेटी बाल राखी है। ४. भले कान गो जवानों को सुखाकर खुद कर देते हैं । - धनमुनि — - मारवाड़ी भजनमाला - राजस्थानी कहावत - फ्रक लिन ५. भारत मे १ करोड १५ लाख ६० हजार स्कूली बच्चे बहरे हैं। (डा. वाई. पी. कपूर) - नवभारत टाइम्स, २ फरवरी १६६३ ६. बोलो पूछे बोली ने कोई गंधा होली में । २७६ ७. पंडितजी पाए लागं तो कहे कपासिया है। पंडितजी मंत्र में हो, तो कहे भड़ीता करने खासुं । - राजस्थानी कहावत (अंगम हाथ में थे) ८. बहरे के प्रश्नोत्तर चहरा आदमी सुनता तो है नहीं अतः अपने प्रश्नों का उत्तर थड़कर ही विसी से बात करता है |

Loading...

Page Navigation
1 ... 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837