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छठा भाम : चौथा कोटक
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2. जहाँ धुद्धि और भावना का मेल नहीं माता, वहाँ इन्द्रियनिग्रह का
अभाव है।
७. विश्वामित्रपराशरप्रभृनयो बाताम्बुपाशिना-- रतेऽपि स्त्रीमुखपंकजं मुललित दृष्ट्वैव मोहं गताः । शाल्यन्नं सघृतं पयोदधियुतं ये भुजते मानवा-- स्लेयामिन्द्रियनिग्रहो यदि भवेद् विन्ध्यस्तरेत् सागरे ।
-भर्तृहरि-गारशतक ६५ फेवल वायु, अल और पतों को खाकर जीने वाले विश्वामित्र-पराशर
आदि बड़े-बड़े ऋषि भी स्त्रियों के मनोहर मुख-कमल को देखकर मोहित हो गए, तो फिर पी-दूध- -दघिमिश्रित चावलों का भोजन करने वाले मनुष्य अपनी इन्द्रियों का दमन कर ही कैसे सकते हैं ? उनसे यदि इन्द्रिय निग्रह हो जाम, तो विन्ध्याचल पर्वत भी समुद्र में तरने लग जाय ।