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बा भान दूसरा कोष्टक ७. गोध्ने चंध सुरापे च, चौरे भग्नव्रते तथा । निष्कृतिविहिता सदभिः, कृतने नास्ति निष्कृतिः ।।
-बाल्मीकिरामायण ४१३४।१२ गोघाती, शराबी, चोर और व्रतभ्रष्ट-इन सबके लिए तो सत्पुरुषों ने प्रायश्चित्त का विधान किया है, किन्तु कतघ्न के विषय में कोई
प्रायश्चित नहीं है। ८. ऋषि और चाण्डालिनी का संवादऋषि
कर खप्पर शिर श्वान है, लोहु जू खरड़े हत्थ ।
छटकत मग चंडालिनी, ऋघि पूछत है बत्त: चाण्डालिनी--
तुम तो ऋपि भोरे भए, नहिं जानत हो भेव । कृतघ्नी की चरणरज, छटकत हूँ गुरुदेव !