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१०. (क) अप्पा रक्खी चरेऽप्पमतो |
आत्मरक्षक
- उत्तराध्ययन ४।१०
अपनी आत्मरक्षा करनेवाला अप्रमादी होकर विचरे ।
(ख) तओ आयरक्खा पत्ता तं जहा
धम्मियाए पडिचोयाए पडिचोएता भवइ तुसिणीए वासिया, उता वा आया एगंतमवक्कमेज्जा ।
- स्थानांग १।३११७०
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तीन प्रकार के आत्मरक्षक रहे हैं - (१) अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्ग करनेवाले अनार्य पुरुष को धर्मोपदेश देनेवाला, (२) उपदेश देने पर न माने तो चुप रहकर ध्यान करनेवाला ( ३ ) ध्यान न कर सके तो विधियुक्त अन्य एकान्त स्थान में चला जानेवाला ।
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