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इन्द्रियो की शक्ति १. इन्द्रियाणि प्रमाथीनि, हरन्त्यपि यतेमनः ।
-श्रीमतभागवत ७।१२।७ अत्यन्त तंग करनेवाली इन्द्रियो यति-संन्यासी के मन को भी हर लेती
हैं अर्थात विषयों की ओर ले जाती है । २. बिहकतोजमुमपकर्षति कहित --
शिश्नोऽन्यतस्त्वगुदरं श्रवणं कृतश्चित् । घारणोऽन्यतश्चपल हक क्व च कामशक्तिवश्यः सान्य इब गेहपति लुनन्ति । जैसे-विभिन्न सौते (मपलिया) गृहस्वामी को भिन्न-भिन्न दिशाओं में खींच ले जाती है, वैसे-जीभ अपने स्वामी शरीर को एक और खीचती है तो ध्यास अपनी ओर ले जाती है। जननेन्द्रिय उसको एक ओर प्रेरित करती है, उसी प्रकार--स्पर्श, पेट और कार उसे दूसरी भोर प्रेरित करते हैं। प्राणेन्द्रिय उसको भिन्न दिशाओं में खींचती है तो
सपल आँखें और कामशक्ति उसको अन्यत्र ही ले जाती है । ३. शब्दादिभिः पञ्चभिरेव पञ्च,
पञ्चत्वमापुः स्वगुणेन बद्धा । कुरङ्ग-मातङ्ग--पतङ्ग---मीनभङ्गा नरः पञ्चभिरञ्चितः किम् ॥
—विवेकचूडामणि ७८ २५४