________________
१७.
वस्तृत्वकला के बीज
१०. अद्भुत भिखारी-वि. सं. २००४ की बात है, बिलेपारला (बम्बई
में हम एक दिन बाहर जा रहे थे । रंड़ी में बैठा हुआ एक अपाहिज मिला । जिसके हाथ-पैर नाक-कान कटे हुए थे। लंगोटी पहनी हुई थी एवं मुंह में सिगरेट थी। बड़ी खींचने वाला व्यक्ति कह रहा था, अपाहिज को कुछ दो, बड़ा पुण्य होगा। देखकर आश्चर्य हुआ और स्थानीय भाइयों से पूछा तो पता लगा कि गुंडों-बदमाशों की एक टोली है। उसका काम यही है कि बच्चों को उड़ाकर विक्षतांग बना नना और उनके सहारे दुनिया को ठग खाना । सुबह से शाम तक पचासों रुपये इकट्ठे कर लेते हैं । अपाहिज को केवल रोटी-सिगरेट आदि मिलते हैं । शेष रुपये बदमाशों की टोली हजम कर जाती है।
- वनमुनि