Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 788
________________ छठा भाग : तीसरा कोष्ठक ६. एक व्यापारी को बड़ा घाटा लगा । वह राजा भोज के यहाँ से एक बड़ी रकम ऋण के रूप में लेकर घर की ओर चला । रास्ते में यह एक रात तेली के घर रुका। व्यापारी भाषा समझता था। उसने तेली के दो बलों की बातें सुनी। एक ने कहा- मैं इस तेली का कर्ज सुबह तक चुका कर इस योनि से छूट जाऊंगा। दूसरे ने कहा- यदि १००० रु० की शर्त पर राजा भोज के बैल की मेरे साथ दौड़ हो जाय तो जीत जाऊ और में भी ऋण मुक्त हो जाऊं पहला बैल अगले दिन सुबह व्यापारी के सामने ही मर गया । उसके ने रात का सारा हाल तेली को कह सुनाया । यह सुनते ही तेली ने राजा के बैल के साथ दौड़ की होड़ लगाई। दौड़ में तेली का बैल जीत गया । १००० रु. तेली को मिल गये 1 रुपये मिलते ही बैल मर गया । यह देखकर व्यापारी ने राजा को रुपये लौटाते हुए बैलों का सारा हाल सुनाया और कहा- राजन् ! इस जन्म में तो मैं यह कर्ज हरगिज चुका नहीं सकता और अगले जन्म के लिए कर्ज का बोझ उठाना मुझे उचित नहीं लगता । - कल्याण सत्कथा अंक से मरते ही ब्यापारी १०. अधिक ऋणवाले— (क) बहु दुखिया ने दुख नहीं, ने बहु ऋरणीया ने ऋण नहि । -गुजरती कहावत (ख) चड़िया सौ ते नट्ठा भउ । ११. भारत पर विदेशों का ऋण २२६ - पंजाबी कहावत - १९४७ में जब भारत स्वतन्त्र हुआ, उस समय भारत का विदेशों में १,७०० करोड़ रुपये जमा थे, अर्थात् प्रत्येक भारतवासी ५० रुपये का पावनेदार था । 'स्टेट्समैन' १२ जुलाई १६७१ के अनुसार अप्रैल १६७१ के अन्त तक भारत ६,६०२ करोड़ रुपये का विदेशी कर्जदार बन चुका है अर्थात प्रत्येक भारतीय १५० रुपये का देनदार हो चुका है । नवभारत टाइम्स १६ नवम्बर १९७१ (श्री रामेश्वर टॉटियां के लेख से ) x

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