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चौथा कोष्ठक
आत्मा
१. जे आया से बिनाया, जे विन्नाया से बाया । जेरग वियागाइ से आया । तं पडुच्च पइिसंखाए ।।
-आचारोग-५५ जो आत्मा है, वह विज्ञाता है । जो विज्ञाता है, वह आत्मा है । जिससे जाना जाता है, वह आत्मा है । जानने की इस शक्ति से ही आत्मा
की प्रतीति होती है। २. जो अहंकारो, भगिनं अयलक्खणं ।
-आचाराग चूणि-१।११ ग्रह जो अन्दर में 'अहं' को चेतना है, यह आत्मा का लक्षण है। ३. यत्राहमित्यनुपरितप्रत्यय, स आत्मा।
-नौतिवाक्यामृत ६४ जहाँ "मैं हूँ" ऐसा सुदृढ़ निश्चय हो, वह आत्मा है । ४. जिस हस्ती को वेदान्ती ब्रह्म कहते हैं, भवत भगवान कहते हैं, उसे योगी आत्मा कहते हैं।
--रामकृष्ण ५. बिने अपने जीवन के लिए मन, प्राणा, और शरीर की गर्ज नहीं, अपने
ज्ञान के लिए मन और इन्द्रियों की गजं नहीं और अपने आनन्द के लिए पदार्थभाष के बाह्यस्पशं की गर्ज नहीं, उसी तत्त्व का "आत्मा' नाम दिया गया है।
---अरविर घोष २३५