Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 798
________________ ३ आत्मा की शाश्वतता आदि १. नत्थि जीवस्स नासो नि । -उत्सराध्ययन २।२७ आस्मा का कभी नाश नहीं होता। २. गिगच्चो अविरणासि सासबो जीवो। -वशवकालिक नियुक्ति-भाष्य ४२ ___ आत्मा नित्य है, अविनाशी है एवं शाश्वत है । ३. न जायते म्रियते वा कदाचिद्, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥२०॥ नेन छिन्दन्ति शस्त्रारिए, ननं दहति गावकः । न चैन क्लेदपन्यागो, न शोषयति मारुतः ।।२३।। -गीता अ०२ यह आत्मा न कभी जन्म लेती है, न कभी मरती है अथवा न यह आत्मा होकर के दुबारा होने वाली है। क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और गुगतन है ॥२०॥ इस आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न इसको आग जला सकती है न इसको जल गीला कर सकता है और न इसको वायु सुखा सकती है ॥२३॥ ४. आत्मा को परिमितता(क) बालाग्रशतभागस्य, शतधा कल्पितस्य च । भागो जीवः स विज्ञ यः, स चामन्त्याय कल्पते ॥ -श्वेताश्वतर उपनिषत् ५।६ २३२

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