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पनत्वकला के बीज
बाला केसी भाग के सौ भाग जितना जीव होता है, वह अनन्त परिणामवाला है। (ख) अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषो ऽन्तरारमा । सदा जनानां हृदये सनिविष्टः॥
-स्वेताश्वतर उपनिषद-३।१३ अगुष्ठ मात्र परिमाण याला अन्तर्यामी परमात्मा मनुष्यों के हृदय में
सम्यक् प्रकार रो स्थित है। ५. आत्मा को अलिङ्गिता(क) न इत्थी, न पुरिसे न, अन्नहा।
-आचारांग-५६ आत्मा न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है ।। (ख) नंब स्त्री न पुमानेप, न चेवायं नपंसः । यद् यच्छरीरमादत्त, तेन-तंन स युज्यते ।।
-श्वेताश्वतर उपनिषत् ५।१० यह आत्मा न स्त्री है, न पुरुष है और न यह नपुसक है। जो-जो शरीर धारण करता है, उस-उस नाम से युक्त हो जाता है। (ग) वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
गीता २२ जैसे-मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्रों को धारण कर लेता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को छोड़कर नए शरीरों को धारण कर लेता है।