Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 807
________________ १. यः आत्मवित् स सर्वविद् । जिसने आत्मा को जान लिया, उसने सब कुछ जान लिया । २. तरति शोकमात्मविद् छांदोग्योपनिषद-७/१/३ जो आत्मा को अपने आपको जान लेता है, वह दुःख सागर को तेर जाता है । J ३. तमेव विद्वान् न विभाय गृत्योः धीरमजरं आत्मानं युवानम् । जी धीर, अजर, अमर, यह कभी मृत्यु से नहीं डरता 1 तरहरामी आत्मज्ञ ४. नीतिज्ञा नियतिज्ञा, वेदना, अपि भवन्ति शास्त्रज्ञाः । ब्रह्मज्ञा अपि लभ्याः स्वज्ञानज्ञानिनो विरलाः ॥ J . अथर्ववेद १०३८।४४ बामा को जानना है, जगत में नीति के जानकार है, नियति- होनहार के जानकार हैं, वे व अन्य शास्त्रों के जानकार हैं, ब्रह्मज्ञानी भी मिल जाते है, लेकिन आत्मा को जाननेवाले विरले हैं । ५. पठन्ति चतुरो वेदान् धर्मशास्त्राण्यनेकशः । आत्मानं नैव जानन्ति दर्वी पाकरसं ग्रथा ॥ २४५ - चाणक्यनीति १५.१२ 4 1 I 1 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837