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१. ऋण लेने का अर्थ है, दुःख मोल लेना ।
५. ऋण लेनेवाला ऋण देनेवाले का वास है । ६. अधम ग्राहकस्यादुत्तमर्णस्तुदायकः ।
ऋण (कर्ज)
२. आदमी के लिए कर्ज ऐसा है, जैसा चिड़िया के लिए साँप ५. न त्रिषविषमित्याहु ब्रह्मस्वं विषमुच्यते । विषमेकाकिनं हन्ति, ब्रह्मस्वं पुत्र-पौत्रकम् ॥
- सुभाषितरत्नभाण्डार, पृष्ठ १०२ चिप विष नहीं है, वास्तविक विष ऋण है। क्योंकि विष तो केवल खाने वाले को मारता है, किन्तु ऋण उसके पुत्रपौत्रों की भी
४. ऋणी होना ही सबसे बड़ी निर्धनता है ।
- टसर
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- एम. जी. लोश्वर
- म कोष- ३।५४६
श्रण लेनेवाला अभ्रमणं और देनेवाला उत्तमर्ण कहलाता है । ७. स्त्रियों को सोचना चाहिए कि हमारी वेषभूषा एवं शृङ्गार के लिए पतिदेव कर्जदार तो नहीं बन रहे हैं ?
८. सरकार चाहें तीन वर्षे बाद छुटकारा करदे तथा बेशर्म होकर यहाँ चाहे कोई दिवालिया कहलाकर ऋणमुक्त हो जाय लेकिन धर्मशास्त्रानुसार अनन्तजन्मों तक भी कर्ज को चुकाये बिना प्राणी ऋण मुक्त नहीं हो
।
सकता ।