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वफ्लत्वकला के बीज
बुरो पेट पंपाल है, कुरो युद्ध से भागनो।
गंग कहे अकबर सुनो ! सबसे बुरो है मांगनी ।। ५. देपथुमलिनं वयं, दीना वाग, गद्गदस्वरः ।
मरणे यानि चिह्नानि, तानि चिह्नानि याचने ।।
--म्यास
कंपन, बदन का मलिन होना, दीनतायुक्त वाणी एवं गद्गदस्वर आदि, जो मरण के चिन्ह हैं, याचना करते समय यारक के शरीर में भी वे
ही चिन्ह हो जाने हैं। ६. वदनाच्च बहिन्ति, प्रागाराचाक्षर: मह । ददामीत्यक्षरानुः, पुनः कदि विशन्ति हि ।।
-कल्पतरु पाचना के सारे के साथ पानया के प्राण मह । बाहर निकल जाते हैं। फिर देता हूँ दाता के इन अक्षरों के गाथ कानों द्वारा पुनः अन्दर प्रवेश
करते हैं। ७. देहीति वचनं श्रुत्वा, हृदिस्थाः पञ्च देवताः । मुखान्निर्गस्य गदछन्ति, श्री-हो-धी-शान्ति-कीर्तयः ।।
-यातल मुझे कुछ दो-ऐसे बोलते ही हृदय में विराजमान श्री-लक्ष्मी, ह्रीलज्जा, धी-बुद्धि; शान्ति-कीति-ये पांचों देवता यात्रा के मुख से
निकल जाते हैं। =. आव गया आदर गया, नैनन गया सनेहु । ये तीनों तब हो गए, जबहि कहा कालु देहु ।।
-कबीर १. धनमस्तीति वाणिज्य, किंचिरस्तीति कर्पयाम् । सेवा न किनिदस्तीति, भिक्षा नैव च नंव च ।।
-पास