________________
छठा भाग : दूसरा कोष्ठक
१२५
सुना जाता है कि एक बार उन्हें किसी ने नई हवेली देखने को बुलाया। देखकर उन्होंने कहा - हवेली तो चोखी बणी हैं। बस रात रात में सारी हवेली फट गयी ।
४. मोमासर में एक बार छायर की बरात आयी । बरातियों में छापर के नाहटा सरदार भी काफी थे। एक चूना पीसने का घरहट पड़ा था । बरातियों ने कहा - अहा । कितना गोल है। कहते हैं कि कुछ ही क्षणों के बाद उसके दो टुकड़े हो गये ।
५.
वि० सं० २००१ को लत है आचर्य होन व्याख्यान में पधारे। मुखमुद्रा से प्रभावित होकर मोतीलाल नाहटा ने कुछ विशेष गुणग्राम किये। आचार्यथी को नजर लगी और १०४ डिग्री बुखार हो गया । पला लगते ही मोतीलालजी ने आकर शुभ कारा डाला, बाचार्य श्री ठीक हो गये ।
इनके कथनानुसार इनकी नजर इतनी लगती है कि यदि ये टोकरी में से एक आम खाकर प्रशंसा कर देते हैं तो शेष आम फौरन बिगड़ जाते । इससे भी अधिक आश्चर्य यह है कि ये टेलीफोन पर भी थकारा डालकर दृष्टि दोष का इलाज किया करते हैं ।
६. अपनी नजर अपने-आप को भी लग जाती है। जैसे मेरा शरीर अब बिल्कुल ठीक है, ऐसे सोचते ही कोई न कोई बीमारी आ जाती है । इस साल हमारी खेती बहुत बढ़िया है, ऐसा विचार करने से टीड़ी, राद आंधी-तूफान आदि के उपद्रव होकर नुकसान हो जाता है। मोटर कितनी तेज चल रही है, ऐसा कहते ही उसमें खराबी हो जाती है । मेरी यात्रा कितने अच्छे ढंग से सम्पन्न हो गयी, ऐसा चिन्तन करते हो यात्रा में कुछ न कुछ विघ्न आ जाता है। लिखना कितना अच्छा हो रहा है - ऐसा दिन में आते ही स्वाही हुलकर या कलम टूट कर उनमें बाधा आ जाती है। वास्तव में नजर लगाने से नहीं लगती। मन में खुश होकर आश्चर्य प्रकट करने से लगती है ।
*