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छा भाग : दूसरा कोष्ठक
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६. तिण्हं दुष्पडियारं समाउसो ! तं जहाअम्मापिउरगो, भट्टिस्स, धम्मायरियस्स ।
-स्थामांग ३।१।१३५ है आयुष्मन् श्रमण ] तीनों के उपकार का बदला चुकाना फटिन है--
माता-पिता का, स्वामी का और धर्माचार्य का । ७. स पुमान् वन्द्यपरितो यः प्रत्युपकारमनपेक्ष्य परोपकारं करोति ।
-नीतिवाक्यामृत २७।३१ प्रत्युपकार को आशा न करके दूसरों का उपकार करने वाले का चरित्र स्तुति करने योग्य है।
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