________________
पक्रमाला पीज
तो क्या हुआ ? वह अपने शरीर से भी दुनिया के संताप का नाश
कर रहा है। ४. पत्र-पुष्प-फल-चछाया, मूल-बहकल-दारुभिः। गन्ध-निर्यास-भस्मास्थि-ताम्मः कामान् वितन्वते ।।
-सुभाषितरल-भाण्डागार, पृष्ठ २४७ वृक्ष अपने पत्त', फूल, फल, छाया, मूल, वल्कल, काष्ट, गन्ध, दूध, रमा, भस्म, गुटली और कोमलमंकुर से प्राणियों को सुख पहुंचाते हैं 1 [हरा-मरा वृक्ष फल, फूल एवं छाया देता है. सूखने पर टेबल-फुर्सी, पटे, किवाड़ आदि बनकर जगत की सेवा करता है, ईधन बनकर रसोई आदि बनाता है तथा मनुष्यों के मुर्दे को जलाता है। आखिर
राख बगकर भी बर्तन आदि को साफ करता है। ५. दीपक जलकर भी प्रकाश देता है, पंखा स्वयं घूमकर भी लोगों को हवा
देता है तथा केया काले होकर भी मनुष्यों को शोभा बढ़ाते हैं 1 मनुष्यों। तुम भी इनसे कुछ सीखो एवं परोपकारी बनो !