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१. परहितनिरतानामादरो नात्मकार्ये ।
परोपकारी
- सुभाषितरत्न खमञ्जूषा
परोपकार में लगे हुए पुरुषों को अपने काम का ध्यान नहीं रहता । २. पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः । नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः, परोपकाराय सतां विभूतयः ॥ एनाकर कि कुछ खरक करिभिः करोति । श्रीखण्डखण्ड मलयाचलः किं परोपकाराय सतां विभूतयः ॥
—उपमहागर
नदियाँ स्वयं पानी नहीं पीतीं, वृक्ष फल नहीं खाते और मेघ धान्य का भक्षण नहीं करते, क्योंकि सत्पुरुषों की विभूतियाँ परोपकार के लिए हो होती हैं ।
रत्नाकर (समुद्र) को रत्नों से क्या लाभ ? विन्ध्याचल को हाथियों से क्या लाभ? और मलयाचल को चन्दन के खण्डों से क्या लाभ ? लाभ कुछ भी नहीं है, केवल परोपकार के लिए ही में सब रत्नादि द्रव्यों को धारण करते हैं ।
३. यद्यपि चन्दनविटपी फल-युगविवर्जितः कृतां विधिना । निजवपुपंय तथापि हि संहरति संतापभपरेषाम् ॥
- गोवर्षमाचार्य विधाता ने चन्दन के वृक्ष को फल-फूल से होन बना दिया, तो
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