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पत्वकला के बीज
गुणीजनों की गणना करते समय जिसकी लेखनी शीघ्रता से नहीं चलती, उस पुत्र से यदि माता पुत्रवती कही जाय तो कहो ! फिर वन्ध्यास्त्री कंसी होगी ?
२०. आरोप्यते शिला शैले, यत्नेन महता यथा । निपात्यते क्षशेनाधस्तथा गुद
-- हितोपदेश २०४७ जैसे-- किसी ऊँचे स्थान पर शिला बड़े यत्न से चढ़ाई जाती है और नीचे क्षणभर में गिरा दी जाती है, गुण और दोष के विषय में आत्मा की भी ऐसी ही स्थिति है, यानी गुणों का ग्रहण कठिन है एवं दोषों का ग्रहण सरल है ।
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