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गुणहीन
१. निगणस्य हतं रूपम् ।
--चाणक्यनीति मा१६ गुणहीन के रूप-सौन्दर्य को घिवचार है । २. सीरत नहीं जो अच्छी, सूरत फिजूल है। जिस गुल में बू नहीं, वह कागज का फुल है । सीरत के हम गुलाम हैं, सूरत हुई तो क्या ? सुखो-सफेद मिट्टी की, मूरत हुई तो क्या ?
--उर्दू शेर ३. स्वयम्गुणं वस्तु न खलु क्षमाताद् गुणवद् भवति । न गोपालग्नेहाद् उक्षा क्षरति क्षीरम् ॥
नीतिवाक्यामत १६५.६ निगुण बस्नु किसी के पक्षपात से गुणयुक्त नहीं होती, ग्वाले के स्नेह
से बल दूध नहीं दे सकता । ४. पुरुषा अपि बागा अपि म गच्युताः कस्य न भयाय ?
-सुभाषितरत्न-खण्डमंजूषा गुण से च्युत-पतित पुरुष और बाण किसको भय उत्पन्न नहीं करता? (यहाँ गुण शब्द के दो अर्थ हैं—सद्गुण और धनुष की डोरी)। ५. गुणविहीना बहुजल्पयन्ति ।
-सुभाषितरत्न-खण्डमंजूषा गुणहीन व्यक्ति अधिक बोला करते हैं।
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