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गुणग्राही के अभाव में
१. गुणिनोऽपि हि सीदन्ति, गुणग्राही न चेदिह । सगुणः पूर्णकुम्भोऽपि कूपएव निमज्जति ।।
- सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ८५
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यदि गुणग्राही न हो तो गुणीजन भी खिन्नता को प्राप्त हो जाते हैं । देखो ! भरा घड़ा कुएं में गिर जाता है, यदि उसकी रस्सी (गुण) को कोई पकड़नेवाला न हो ।
२. जब गुन के गाहक मिलें, तब गुण लाख बिकाय | जब गुन का ग्राहक नहीं, कौड़ी बदले जाय ॥
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—कबीर ३. सुयोग्य व्यक्ति के अभाव में योग्यता का मूल्य बहुत कम रह जाता है ।
-- नेपोलियन
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