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वक्तृत्वकला के बीज
८. महान व्यक्ति हमें महान इसलिए लगते हैं कि हम घुटनों पर टिके
--स्टर्नर ६. परिमाण किसी भी व्यक्ति एवं राष्ट्र की महानता की निकृष्टतम कसोटी है ।
-जवाहरलाल नेहरू १०. महान दोषों से संपन्न होना भी महान पुरुषों का ही अधिकार है।
-रोशफूको ११. विश्व को महान पुरुषों की भावश्यकता है, किन्तु उनके पुजारियों एवं खुशामदियों की नहीं।
-बीरजी १२. महानुपुरुष वही है, जो कहने से पहले करके दिखाता है !
--कन्पपूसियस १६. मनुष्य को तुच्छ (छोटी) बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए ; यदि वह । उन्हीं में फसा रहेगा तो बड़े काम कब करेगा एवं महान कब बनेगा।
-कन्फ्यूसियस १४. किसी महापुरुष को तब तक महान् नहीं समझना चाहिये, जब तक
उसकी मृत्यु नहीं हो जाती। १५. स्वामी रामतीर्थ (जब कालेज में प्रोफेसर थे) ने काले पट्टे (दीन बोर्ड)
पर लकीर खींच कर कहा-इसे छोटी बनाओ। तब एक लड़का उसे मिटाने लगा, स्वामी जी ने कहा-मिटाओ मत ! सभी छात्र स्तब्ध थे । इतने में एक बुद्धिमान लात्र ने उस लकीर के नीचे घड़ी लकीर खींच दी एवं वह छोटी बन गई । तत्त्व यह है कि दूसरों को मिटाओ मत, अपने गुणों को बढ़ाकर महान् बनो।