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गुणज्ञ १. बिरला जानन्ति गुणान् ।
-- सुगा सितारगार, पृष्ठ १७७ गुणों को जाननेवाले विरले हैं। २. मुगी सैकड़ों में कहीं. मिल जाते दो एक। नास्त्रों में मिलना कटिन, गुणदण्टा मुविवेक ।
--लास्विकत्रिशतो १६५ ३. गुणी गुरणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः । ___ गुण को गुणी ही जानता है ।। ४, गुणिनि गुणज्ञो रमने, नागुगशीलस्य गुरिणनि परितोषः । अलि रेति वनात् पद्मं, न दर्दुरस्त्वकवासोऽपि ।
--शाकुसल गुणज्ञ ही गुणीजनों से प्रेम करता है । गुणहीन गुणियों में सन्तुष्ट नहीं होता । भौरा वन से बनकर कमल के पास जाता है, किन्तु मेड़क पानी
में रहता हुआ भी कमल के निकट नहीं जाता। ५. जितनी चेष्टा दूसरों के दोषों को जानने की करते हो, उससे आधी भी
यदि उनके गुणों को जानने की करो तो तुम अजातशत्र बन सकते हो । ६. न वेत्ति यो यस्य गुगाप्रकर्षः स तं सदा निन्दति नाऽत्र चित्रम् । यथा किराती करिकुम्भलब्धां मुक्ता परित्यज्य विभक्ति गुजाम् ॥
--चाणक्यनीति ११८ जो व्यक्ति जिसके गुणों को नहीं जानता, यह सदा ही उसकी निन्दा किया करता है । जैसे—भीलनी हायी के मस्तक से प्राप्त मोती को छोड़कर गुम्जा को ही पहनती है ।