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१. महत्सङ्गस्तु दुर्गामोऽगम्योऽमोधश्च ।
महापुरुषों का सम्पर्क
महात्माओं का सङ्ग दुर्लभ, अगम्य और अमोध है ।
२. महाजनस्य संमर्गः कस्य नोन्नतिकारकः ? पद्मपत्रस्थितं वारिधत्त मारकर्ति द्युतिम् ।
-वतन्त्र ३।५६
महापुरुषों का संसर्ग किसे उत्रत नहीं करता ? देखो कमलपत्र पर ठहरा हुआ जलबिन्दु मरकतमणिवत् चमकने लगता है।
३. कीटोऽपि सुमनःसंगा - दारोहति सतां शिरः । अमायाति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः ॥
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-भक्तिसूत्र ३६
- हितोपदेश प्रास्ताविका ४५
कीड़ा मी फूलों की संगति से सज्जनों के सिर पर पहुंच जाता है तथा महापुरुषों द्वारा स्थापित किया हुआ पत्थर भी देवता कहलाने
लगता है ।
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४. काचः काञ्चनसंसर्गाद् धत्त मारकतीं द्य तिम् ।
-- हितोपदेश- प्रास्ताविका ४१ सोने के संसर्ग से कांच भी मरकतमणिवत् प्रभा धारण करने लगता है । ५. मलयाचल गन्धेन, विन्धनं चन्दनायते ।
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मलयाचल पर रहे हुए चन्दन की सुगन्धि से साधारण वृक्ष भी चन्दन बन जाते हैं।