SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 709
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३ १. महत्सङ्गस्तु दुर्गामोऽगम्योऽमोधश्च । महापुरुषों का सम्पर्क महात्माओं का सङ्ग दुर्लभ, अगम्य और अमोध है । २. महाजनस्य संमर्गः कस्य नोन्नतिकारकः ? पद्मपत्रस्थितं वारिधत्त मारकर्ति द्युतिम् । -वतन्त्र ३।५६ महापुरुषों का संसर्ग किसे उत्रत नहीं करता ? देखो कमलपत्र पर ठहरा हुआ जलबिन्दु मरकतमणिवत् चमकने लगता है। ३. कीटोऽपि सुमनःसंगा - दारोहति सतां शिरः । अमायाति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः ॥ 1 r -भक्तिसूत्र ३६ - हितोपदेश प्रास्ताविका ४५ कीड़ा मी फूलों की संगति से सज्जनों के सिर पर पहुंच जाता है तथा महापुरुषों द्वारा स्थापित किया हुआ पत्थर भी देवता कहलाने लगता है । 1. ४. काचः काञ्चनसंसर्गाद् धत्त मारकतीं द्य तिम् । -- हितोपदेश- प्रास्ताविका ४१ सोने के संसर्ग से कांच भी मरकतमणिवत् प्रभा धारण करने लगता है । ५. मलयाचल गन्धेन, विन्धनं चन्दनायते । i मलयाचल पर रहे हुए चन्दन की सुगन्धि से साधारण वृक्ष भी चन्दन बन जाते हैं।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy