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छठा भाग : पहला कोष्ठक
६. रथाम्बु जाह्नवी संगात्, विदर्शरपि पूज्यते ।
-प्रसंगरलावली गलियों का गंदा पानी भी गंगा में मिलने से गंगाजल कहलाकर देवों द्वारा बन्दनीय बन जाता है। ७. स्वीस्यातां सिद्धरसे, शीशक-अपुरणी अपि ।
--विषष्ठिशलाका-पुरुषपरित्र २३ रस के संयोग से शीशा और अपु भी सोना बन जाते हैं।