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धोरपुरुष १ विकारहेतौ सति विकियन्ते, येषां न चेतांसि त एव धीराः ।
---कुमारसम्भव ११५६ विकार उत्पन्न होनेवाली वस्तु पास होने पर भी जिनका मन नि* नहीं होता, वास्तव में वे ही धीर पुरुष हैं ।। २. चलन्ति गिरयः कामं, युगान्तपवनाहताः । कृच्चऽपि न चलत्येव, धीराणां निश्चलं मनः ।।
-मुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ८१ प्रलयकाल के पवन से इलकर पर्वत भले ही अपने स्थान से हट जाए परन्तु धीरपुरुषों का निश्वाः पन घोर कानों में भी विलित नहीं
होता। ३. निन्दन्नु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु, लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु बा यथेष्टम् । अद्य व वा मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्याय्यानाथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ।।
-भत हरि-नीतिशतक-८४ नीतिशपुरुष चाहे निन्दा करें, चाहे प्रशंसा करें । लक्ष्मी चाहे आए चाहे जाए तथा चाहे बाज ही मरना पड़े, चाहे युगान्तर में, लेकिन धीरपुरुष न्यायमार्ग से एक कदम भी पीछे नहीं हटते। ४. काच कथीर अधीर नर, कस्यां न उपजे प्रेम ।
कसरणी तो धीरा सहै, के हीरा के हेम ॥ ५. क्वचिद् भूमौ शभ्या क्वचिदपि च पर्यङ्गशयनं,
क्वचिच्छाकाहारः क्वचिदपि च शाल्योदनरुचिः ।
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