Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 724
________________ चा भाग : दूसरा कोष्ठक ३. प्रसादगुण-इससे मनुष्य दूसरे को सुगमता से सुधार सकता है । ४. आकृतिज्ञान-इससे मनुष्य चाहे जिसको पहचान सकता है। ५, ज्यवस्थाज्ञाम–इससे मनुष्य अपनी या दूसरों की मुव्यवस्था कर __ सकता है। ६, अवलोकनगुण -इससे मनुष्य नई-नई चीजों का ज्ञान प्राप्त करता है । ७. गणितज्ञान-इससे एकाग्रता बढ़ती है | 2. इतिहासमाम–इससे प्राचीन वस्तुएं ध्यान में रहती हैं । ६. समयज्ञान-इससे समय का उपयोग कैसे करना, यह जाना जाता है । १०. वक्तृत्वज्ञान -इससे आकर्षणशक्ति मिलती है । ११, स्वरमान--इससे निकट भविष्य की बहुत कुछ बातें जानी जा सकती हैं। १२. तुलनाशक्ति-इससे बियेचना, वर्गीकरण एवं समालोचना करने की योग्यता प्राप्त की जा सकती है। १३. सौजन्यगुण-इससे विनय, विवेक, सभ्यता एवं समझाने की योग्यता मिलती है। ४. कन्फ्यूशियस के कहे हुए पांच सगुण-- (१) जैन, (२) घुन जू, (३) लो, (४) ते, (५) बेन । (१) जेन-सदाचारी होना । (२) चुन जु–अच्छा व्यवहार, दिल में दया, करुणा एवं प्रेम होना । (३) लो-उदजान और विक होना, आत्मविश्वास से जो ठोक जचे यह कार्य करना । (४) ते नैतिक साहस-ईमानदारी, सच्चाई एवं उदारता होना । (५) बेन-गुणों पर उटे रहना।

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