________________
छठा भाग : दूसरा कोष्ठक ६. न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत् ।
-कुमारसंभव ॥५४ रत्न किसी की तलाश नहीं किया करता, उसी की तलाश की जाती है। ७. गुणो भूषयते रूपम् ।
-घागस्यनीति ५५१५ गुण से ही रूप शोभा पाता है। ५ ८. गुणेन ज्ञायते त्वार्यः ।
-चाणक्यनीति र गुण से आर्य जाना जाता है। १. एको गुगः खलुः निहन्ति समस्तदोषम् ।
एक ही गुण सब दोषों को नाश कर देता है । १०. छोटा-सा अंकुश हाथी पर नियन्त्रण कर लेता है, छोटा-सा दीपक
अन्धकार को दूर कर देता है, छोटा-सा बन पर्वत को चूर-चूर कर डालता है । छोटा-सा रत्न लास्त्रोंपति बना देता है। छोटा-सा मन्त्र देवता को खींच लाला है । छोटा-सा यन्त्र (घड़ी) समय बतला देता है, छोटी-सी सुई दो को एक बना देती है, छोटी-सी अमृत की दूद बेहोशी दूर कर देती है, छोटी सी कविता सभा में रंग ला देती है, इसी प्रकार छोटा-सा एक सद्गुण बेड़ापार कर देता है।
-संकलित - ११. सद्गुण स्वास्थ्य है और दुष्यंसन रोग ।
-पेट्राचं । १२, सद्गुण चिथड़ों में भी उतना ही चमकता है, जितना भव्य वेशभूषा में ।
--डिकेम्स