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१. विजेतव्या लङ्का चररणतरणीय जलनिधि-विपक्षो लङ्केशी रणभुवि सहायाश्च कपयः । तथाप्येको रामः सकलमबधीद् राक्षसकुलं, क्रियासिद्धिः सत्वे वसति महतां नोपकरणे ।
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- सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ५४ लंका पर विजय पानी थी, समुद्र पैरों से तैरना था, रावण जैसा दुश्मन था, रणभूमि के सहायक केवल वानर थे । इतने पर भी अकेले राम ने राक्षसकुल को नष्ट कर दिया। क्योंकि महापुरुषों के पराक्रम में ही उनकी कार्यसिद्धि रहती है, सहायक उपकरणों में नहीं । २. रथस्यैकं चक्रं भुजगयमिता सप्ततुरगा, निरालम्बो मार्गश्चरणरहितः सारथिरपि 1 ब्रजत्यन्तं सूर्यः प्रतिदिनमपारस्य नभसः, क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे ॥
- सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ५४
महापुरुषों का पराक्रम
सांप लिपटे हुए हैं,
इतने
पर भी सूर्य
रथ के पहिया एक है, घोड़े साल हैं, जिनके पैरों में भागं निरालम्ब आकाश है एवं सारथी पांगला है । प्रतिदिन अपार आकाश को पार कर देता है । कारण यही पुरुषों के पराक्रम में ही उनकी कार्यसिद्धि रहती है, सहायक उपकरणों में नहीं ।
है कि महा
३. अनुकुरुते धनध्वनि, नहि गोमायु-रुतानि केसरी ।
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-- शिशुपालवध