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{ १० ) बहुत समय से जनता की विद्वानों की और वक्तृत्वकला के अभ्यासियों की मांग थी कि इस दुर्लभ सामग्री का जनहिताय प्रकाशन किया जाय तो बहुत लोगों को लाभ मिलेगा । जनता की भावना के अनुसार हमने मुनिश्री की इस सामग्री को धारना प्रारंभ किया । इस कार्य को सम्पन्न करने में श्री डूगरगढ़, मोमासर, भादरा, हिसार, टोहाना, उकसाना, कैथल, हांसी, भिवानी, तोसाम, ऊमरा, सिसाय, जमालपुर, सिरसा और भटिंडा आदि के विद्याथियों एवं युवकों ने अथक परिश्रम किया है । फलस्वरूप लगभग सौ कापियों में यह सामग्री सकलित हुई है । हम इस विशाल संग्रह को विभिन्न भागों में प्रकाशित करने का संकल्प लेकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हुए है।
परमथम आचार्य प्रवर ने पुस्तक के लिए अपना मंगल-संदेश देकर इस प्रयत्न को प्रोत्साहित किया—उनके प्रति मैं हृदय की असीम श्रद्धा व्यक्त करता हूं । तथा पुरानी बहता 'योगिता में पानी की प्रतिमा लिखी है जनसमाज के बहुश्र त विद्वान तटस्थ विचारक उपाध्याय श्री अमरमुनि जी ने । उनके इस अनुग्रह का मैं हृदय से आभारी हूं ।
इमके प्रकाशन का समस्त भार श्री बेगराज भंवरलाल जी चोरडिया, चरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्ता ने वहन किया है, इस अनुकरणीय उदारता के लिए हम उनके अत्यंत आभारी हैं। इसको प्रकाशन एवं प्रूफ संशोधनमुद्रण आदि की समस्त ब्यवस्था 'संजय-साहित्य-संगम' के संचालक श्रीचन्द जी सुगना 'सरस' ने की है, तथा अन्य सहयोगियों का जो हार्दिक सहयोग प्राप्त हुआ है उसके लिए भी हम हृदय से कृतज्ञता-ज्ञापित करते हैं। आशा है वह पुस्तक जन-जन के लिए, वक्ताओं और लेखकों के लिए एक संदर्भग्रंथ (विश्लोग्राफी) का काम देगी और युग-युग तक इसका लाभ मिलता रहेगा।....