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पांची भाग : नीमरा कोष्ठक
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मंत्र पढ़ा, सांप आया । पूछने पर कहा—इसने खेलते समय मुझे पत्थर मे माग था। धीरमलजी ने मन्त्र पढ़कर माफ करने के लिये कहा । सांप बोला--१०० कमेड़े दिलाऊंगा। फिर मन्त्र पढ़कर आग्रह किया, सांप ने पचास कमेड़े अटाए। इस प्रकार रनली पुन मन्त्र पढ़ते गये और कमेड़ों की संख्या घटती गई | आखिर एक कमेड़े पर साँप डट गया। फिर मन्त्र पढा एवं कहा-आधा हनू. मान के नाम का और आधा मेरे नाम का छोड़ दे ! सांप माना एवं कुंवर जी गया ।
• एक बार संपेरों से विवाद हुआ। उन्होंने एक राजसर्प लाकर घोरमलजी पर छोड़ा, सांप ने डक माग एवं वे बेहोश हुए। पूर्व कथानुसार उन्हें गोबर से भरे खड्डे मैं सुला कर आर भी गोबर डाल दिया गया । सात दिन के बाद गोवर फटा एवं बाहर निकलाकर उनके मुंह में धी डाला गया। वे तत्काल होश में आगये | फिर वे जंगलों में धूमकर एक बिल्कुल पतला पीले रंग का साँप लाये और कहने लगे इसका नाम "वंशच्छेद सर्प' है । यह जिसे भी काटेगा उसके वंश के सभी मर जायेंगे। सपेरों ने हार मानी ।
-साध्वी श्रीवीपांजी से अत साँपों की गाड़ी काम की बात है, एक मन्त्रवेत्ता ठाकुर घोड़े पर चढ़कर कहीं जा रहे थे । दो काले नागों पर सवार होकर जाता हुआ एक हरा सांप मिला । टाकुर ने मन्त्र पहकर रास्ते में लकीर खींची, नाग रुके, सर्पराज ने नीचे