________________
"
११
१. कम्माणं तु पहारणाए, आणुपुब्बी क्याइ उ । जीवा सोहिम राष्पत्ता, आययंति मगस्यं ॥
मनुष्य जन्म को प्राप्ति
-उत्तराध्ययन ३७
क्रमयः कर्मों का क्षय होने से शुद्धि को प्राप्त जीव कदाचित् बहुत लम्बे समय के पश्चात मनुष्य जन्म को प्राप्त होता है ।
२. चउहिहि जीवा मस्सताए कम्मं पगरीत तं जहा-गमहा पगडीयाए, क्या अपरयाए । -स्थानांग ४१४३७३
"
चार कारणों में जीव मनुष्यगति का आयुष्य बांधते है। सरल प्रकृति से विनीत प्रकृति से दयाभाव से और अनार्ष्याभाव से ।
J
३. मारतं भवे मूलं, लाभो देवगर भवे |
मूलच्छे एा जीवाणं. रंग-तिरिक्खत्तणं घुवं ॥
२५३
-
- उत्तर|ध्ययन ७१६
मनुष्यजन्म प्राप्त करना मूलधन की रक्षा है। देवत्व प्राप्त करना लाभस्वरूप है और नरक - तिर्यञ्च में जाना मुलवन को खो देना
है ।
*