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पांचवां भाग : चौथा कोष्टक
२५७ ६. छठाणाई सम्वजीवाणं सुलभाई भवंति
तं जहा-माणुस्सए भवे, आरिए खित्ते जम्मे, सुकुले पच्चायाती, केवलिपन्नत्तस्स, धम्मस्स सबरीया, सुयस्स वा सद्दहणया, सद्धह्यस्स वा पत्तियस्स वा रोइयस्स वा सम्म कारणं फासरगया ।
स्थानांग ६।४८५ छः वस्तुएँ सभी जीवों के सिर दुल ..(२) दुष्प-भव (२) आर्य क्षेत्र (३) उत्तमकुल में जन्म (४) केवलीप्ररूपित धर्म का सुनना (५) उस पर श्रद्धा-प्रतीति--रुचि करना (5) उसके अनुसार आचरण करना।