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पांचवा भाग : घोषा कोष्टक
६, अगर तू अपनी कीमत आँकना चाहता है ता धन-जायदाद
पदवियों को अलग रखकर अंतरंग जाँच करले! -सेनेका ७. आदमी की कीमत का अंदा। इसने लगा है कि खुद
अपनी नजर में उसकी क्या कीमत है। मनुष्य समाज से तिरस्कृत होने पर दार्शनिक, शासन से प्रताड़ित होने पर विद्रोही, परिवार से उपेक्षित होने पर महात्मा और नारी से अनाहत होने पर देवता बनता है।
-महर्षिरमण ६. मनुष्य जो कुछ खाते हैं उससे नहीं, किन्तु जो कुछ पचा
सकते हैं, उससे बलवान बनते हैं। धन का अर्जन करते हैं, उससे नहीं, जो कुछ बचा सकते हैं, उससे धनवान बनते हैं। पढ़ते हैं उससे नहीं, जो कुछ याद रखते हैं। उससे विहान होते हैं। उदेश देते हैं उससे नहीं, जो आचरगा में लाने हैं, उससे धर्मवान बनते हैं ये बड़े परन्तु साधारण सत्य हैं । इन्हें अतिभोजी, अतिव्ययी, पुस्तक के
कोट और पाखंडी लोग भूल जाते हैं। -लार्ड बेकन १०. यो न निर्गत्य निःशेषा-मालोकयति मेदनीम् । अनेकाश्चर्यसम्पुरा स नरः कूदईरः ।।
-चंदचरित्र, पृ. ८६ जो घर से निकलकर अनेकआश्चर्यपूर्ण पृथ्वी का अवलोकन नहीं
करता, वह कुएं का मेंढ़क हैं। . ११, अनि उघाड़ी ना खटे, जल फुटयां बिमड़त।
नारी भटक्याँ बीगई, नर भटक्याँ सुधरंत ॥