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चौथा कोष्ठक
१
तिर्यञ्च संसार
१. नारक, मनुष्य और देवों को छोड़कर सब सांसारिक जीवजन्तु तिर्यञ्च कहे जाते हैं ।
तिर्यञ्च पाँच प्रकार के होते हैं -१ एकेन्द्रिय, २ द्वीन्द्रिय, ३ त्रीन्द्रिय, ४ चतुरिन्द्रिय, ५ पञ्चेन्द्रिय |
एकेन्द्रिय तिर्यञ्च पांच प्रकार के होते हैं- पृथ्वीकाय, २ अकाय, ३ तेजस्काय, ४ वायुकाय, ५ वनस्पतिकाय पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च दो प्रकार के हैं समूच्छिम और गर्भज । दोनों ही मुख्यतया तोन-तीन प्रकार के है- जलचर, स्थलचर और खेचर |
-लोकप्रकाशपुञ्ज ३
२.
उहि हि जीवा तिरिक्खजोयिताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - माइल्लयाए, निर्याडल्ल्याए, अलियवयणं कूडतुलक्कडमारणें । —स्थानाङ्ग ४|४|३७३ चार कारणों से जीव तिर्ययोनि के योग्य कर्म बांधते हैं-१ माया छल से, २ गूढ़ माया से, ३ असत्य बोलने से, ४ भूटा तोल -माप करने से |
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