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वक्तृत्वकला के वीज
तप : सदरमुक होना तो बूढ़ा बाबा नजर नहीं आया था। काफी प्रयत्न करने पर भी पता नहीं लगा कि वह कौन था एवं कहाँ से आया था। बस, पता लगते ही स्वगीय श्री बस्तोमलजी छाजेड़ आदि शहर के अनेक श्रावक वहां आ पहुँचे एवं युवकों को धन्यवाद देने लगे । फिर समाज ने चबूतरे पर संगमरमर का 'स्मारक भवन' बनबा दिया, जो इस समय
विद्यमान है। -बंगलौर से प्रकाशिल स्मारिका के आधार पर श्रीजयाचार्य के स्मारक का चमत्कार
सन् १९४३ के अगस्त मास में जब जयपुर के नक्शे का आमूलचूल परिवर्तन किया जा रहा था और नयी सड़कें निकाली जा रही थीं, 'म्युजियम भवन' की एक सड़क के कटाव में, लूमियाजी के बाग में विद्यमान श्री जं. वे. तेरापंथ के चतुर्थपुज्य श्रीजयगरणी का स्मारक (बूतरा भी आ गया । उसका एक तिहाई हिस्सा तोड़ना तय हुआ । वहां के श्रावकों ने काफी प्रयत्न किया, किन्तु सफलता नहीं मिली। क्योंकि मुख्यमन्त्री श्री मिस्मिाइल ने बड़े-बड़े महल, मंदिर एवं मकबरे भी तुड़वा डाले थे। फिर स्मारक की तो बात ही क्या थी। उस समय आनार्य श्रीतुलसी का चार्गास गंगाशहर था । यह समाचार मुनकर सेठ ईश्वरचंदजी चौपड़ा आदि समाज के मुखिया लोग परपर मिले । सबकी सलाह के अनुसार ३-४ साथियों सहित श्री तिलोकचंदजी चौगड़ा