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नरक के दुःख १. जारिसा माणुमे लोए, ताया दीसंति वैयणा । एत्तो अयंतगुणिया, नराएम् दुक्खवेयरणा ।।
-उराराध्ययन १६७४ मनुष्यलोक में जो वेदनाएं नजर आ रही हैं, भरकों में उनसे
अनन्तनुणी वेदनाएं हैं। २. अच्छिनिमीलियमेत्तं, मस्थि सुहं दुक्खमेव पडिबद्ध।
नराए नरइयाणं, अहोनिसं पच्च मारणाणे ॥११॥ अइसीयं अइउण्हं अइतण्हा अइखुहा अइभयं वा । नरए नेरइयारणं, दुकल सयाई अविस्सामं ॥१२॥
-जीवाभिगम-प्रतिपत्ति ३ उ. २. नरकाधिकार नरक में पानी जीत्र दिनराप्त दुःख में पच रहे हैं। उन्हें आंखमींच कर खोलें, इतनी देर भी सुख नहीं है । नरक में अतिशीन, अति उष्णता, अतिसृषा, अतिक्षुधा एवं अतिभय आदि संकड़ों
प्रकार के दुःख्न हैं, जिन्हें पापी जीव अविश्रान्तरूप से सह रहे हैं। ३. गैरइयाए दसबिह वेयरणं पच्चाब्भवमारणा विहरति ते जहा
सीयं, उसिणं, खुहं पिवासं, कंड, परभं, भयं, सोगं, जर, काहिं।
---स्थानाग १०॥७५३ १६३