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पांचवा भाग : तीसरा कोष्ठक ४. आसीयं अत्तीसं, अट्ठावीसं तहेब वीस च । अट्ठारस सोलसगं, अछूत रमेव हेट्ठिमया ॥
-जोबाभिगम प्रतिपत्ति ३ उ. १. नरकाधिकार रत्नप्रभादि पृथ्वियों की मोटाई क्रमशः निम्नलिखित है(१) एक लाख अम्सी हजार योजन, (२) एक लाख बत्तीस हजार
योजन, (३) तफ लाग्न अठाईस हजार योजन, (४) एक लाख
बीस हजार योजन, (५) एक लास्य अठारह हजार योजन, (६) एवा लाख सोलह हजार योजन, (७) एक लाख आठ
__ हजार योजन । ५. तीसा य पनवीसा, पन्नरस दसा य तिन्नि य हवंति । पंचूरसयसहस्सं पंच ' अगुत्तरा गरगा ।।
-जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३., उ. १ नरकाधिकार १ तीस लाख, २ पच्चीस लाप, ३ पन्द्रह लाख ४ दस लास्त्र, ५ तीन लाख, ६ पाँच कम एक लाख, ७ पांच । ये क्रमशः सातों नरकों के नरकवासों की संख्या है । (सव मिलकर ६४ लाख
नरकावास होते हैं।) ६, रत्नप्रभा आदि पृथ्चियों में ग्राम नगर आदि नहीं हैं।
(विग्रहगति प्राप्त जीवों के अतिरिक्त) बादर अग्निकाय नहीं है। वहाँ जो बादल-मर्जना एवं वृष्टि होती है, वह सुर-असुर एवं नागों द्वारा की जाती है ।
-भगवती ६।८ ७. नरगा अंतो वट्टा वादि बजरंसा, अहे खुरप्पसंठाग संठिया, निचंधकारतमसा, वबग्यगह-चंद-सूर नक्खत्त-जोइसप्पहा, मेद-वसा-मांस-कहिर - पूयपडल · चिखल - लिप्ताणु