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वक्तृत्वकला के बीज
जो आदमी दरिद्र हैं उनका दान करना, जो सामवाले हैं उनका शमा करना, जो जवान हैं उनका तपस्या करना, जो ज्ञानी हैं उनका मौन रखना, जो गल भोगने के योग्य हैं उनका मुख की इच्छा का त्याग करना और सभी प्राणियों पर दया करना-पे
सदगुण मनुष्य को स्वर्ग में लजानेवाल हैं । ५. देवों के भेद-- (क) दवा त्रउन्विहा पत्ता तं जहा-भवणव, वागा मं
तरा, जोइगिया, वैमारिगया। - प्रज्ञाप्रना देवता चार प्रकार के होते है-(१) भवनपति, (२) व्यन्तर, (३) ज्योतिष्क, (४) वैमानिक । (ख) पंचविहा देवा पाता, तं जहा- भवियदन्चदेवा, परदवा, धम्मदेवा, देवाधिदेवा, भावदेवा ।
स्थानांग १ पाँच प्रकार के देव कहे हैं-- (१) भक्ष्य प्रदेव-भविष्य में देवनानि में उत्पन्न मियाले जीय, (२) नरदेव-चर, ती, (३) धर्मदेव-श्रागार-गाधु, (४) वेवाधि
देव-तीर्थ कर (५) भावदेव-भवननिदेव आदि ।