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पांचवा भाग : तीसरा कोष्टक
(ग) शक्र न्द्र महागज के लिए कहा जाता है कि वे मनुष्य
के मरतक को तलवार से काटकर, उसे कूट-पीट कर चूर्ण बना देते हैं एवं कमंडनु में डाल लेते हैं। फिर तत्काल उस चूर्ण के रजकणों का पुनः मस्तक बनाकर मनुष्य की धड़ से जोड़ देते हैं। कार्य इतनी दक्षता व शीघ्रता से करते हैं कि मनुष्य को पीड़ा का बिलकुल अनुभव तक नहीं होने दते ।
....परती १४:१५ ४. देवों को आयु(क) दवों की आयु जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट
३३ सागर की है। -प्रशाफ्ना ४ के आधार से (ख) चसहि ठाणोहि जीवादेवाउयत्ताए कम्म पगरेंति, तं
जहा-सरागसंजमेणं, सेजमासं जमेणं,बालतबोकम्मेणं, अकामरिगजराए।
-स्यानांग ४।४।३७३ चार कारणों से जीव देवता का आयुष्य बाँधते हैं । यथा-(१) राग भावयुक्त संयम पालने से, (२) श्रावक-श्रत पालने से, (३) अज्ञान दशा की तपस्या से (1) अकाम-मोक्ष की इच्छा के बिना की गई निर्जरा से। (ग) दानं दरिद्रस्य विभोः क्षमित्वं ,
यूनां तपो ज्ञानबतां च मौनम् । इच्छानिवृत्तिश्च सुखाचितानां, दया च भूतेषु दिवं नयन्ति ।।
-परपुराग, पाताल लण्ड ६२।५८