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पांचवां भाग : तीसरा कोष्टक
हैं । जहाँ ज्ञान है वहाँ अनासक्ति, ऐश्वर्य एवं आनन्द है तथा जहाँ अज्ञान है वहां आसक्ति, वासना एवं दुःख हैं । कीड़े मक्खी, मच्छर, पशु-पक्षी, साधारण मनुष्य एवं शानी-मुनियों में क्रमशः ज्ञान की विशेषता होने से वे गंदगी घास-फूस, झपया-पैसा आदि-शादि पूर्व-पूर्व वस्तुओं में आनन्द नहीं मानते। सिने ना में पूर्ण प्रकाश होते ही खेल ख़तम हो जाता है, ऐसे ही पूर्ण-ज्ञान मिलने से मृक्ति मिन्न जाती है । पाक इतना-सा है कि सिनेमा में पदों पर चित्रित मनु न्य, पशु-पक्षी जई होगे हैं और सांसारिक
प्राणी चेतन । ६. वृक्ष-संसार वृक्ष है । इस पर बंदर भी बैठते हैं और पक्षी
भी। बंदर इनर-उधर वृक्षों पर भटकते रहते हैं किन्तु पभी मौका पाकर उड़ जाते हैं। तुम बंदर बनोगे या पक्षी ?
पक्षी बनाना हो तो पॉरखें मैं लगा । ७. कोठरी जग काजल को कोठरी, रहिये सदा सशंक ।
रत्नाकर की तनय भी, बच्यो म बिना कलङ्क ।। ८. हरो ताप सीनो सुश, छहरो ज्योति अमंद ।
लाख करो अब प्रमनिधि, जात कल न चन्द ।। है. कहत भली समभात बुरी, यही जगत की रोति ।
रज्जब कोठी गार की, ज्यों धोवे त्यों कीच ॥ १०. विश्व एक सुन्दर पुस्तक के समान शिक्षापूर्ण है, किन्तु उसके लिए कुछ भी नहीं, जो इसे पढ़ नहीं सकता।
-गोल्डोनी