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संसार को उपमाएँ १. सुपने सब कुछ देखिए, जागे तो कुछ नादि । ऐमा यह संसार है, समझ देख ! मन मांहि ।।
दादूजी २. जग है सपना अपना न कहूं ,
नर बाहे को झूल में जात ठगा । कवि सूरत क्यों न भजे प्रभु को ।।
तज सूतज भूल के भाव लगा || तेरे जीवत हैं सब ही गरजी ,
वरजी इह बात न खात दगा। तेरे अंत सम भगवंत बिना ,
न झगा नगा न तगा न सगा ।। ३. नाटक सो संसार, जुगल पार्ट सब कर रह्या ।
एक-एक रे लार, मंच छोड़ सब चालसी।। ४. सम्पूर्ण विश्व एक मंच है और स्त्री-पुरुष इस पर अभिनय करनेवाले पात्र।
-शेक्सपियर ५. संसार एक सिनेमा है। सिनेमा में जैसे प्रकाश और
अंधार दो तत्त्व काम करते हैं, एक से काम नही बनता, वैसे संसार-सिनेमा में भी ज्ञान-अज्ञान दोनों तत्त्व आवश्यक