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१. अणते निलिए लोए, सासए न बिएस्सइ ।
संसार का स्वरूप
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यह लोकव्य की अपेक्षा से नित्य है, शाश्वत है एवं इसका कभी नाश नहीं होता ।
२. अनाविरेष संसारो,
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नानागतिसमाश्रयः ।
पुद्गलानां परावर्ता अत्रानन्तास्तथागताः ॥
- सूत्रकृत
सात प्रकार का पुद्गलपरावर्तन कहा है-(१) औदारिकन्पुद्गल परावर्तन (३) तेजस मुद्गल परावर्तन,
(५) स्वासोच्छ्वास
- योग चिन्दु ७०
नरक आदि गतिरूप पर्यायों का आश्रय यह संसार अनादि है । इसमें अनन्त पुद्गलपरावर्तन व्यतीत हो चुके हैं।
३. सत्तविहे पोगलपरियट्टे पत्ते तं जहा ओरालिय मोग्गल परियटूटे बेडब्बिय-पोगलपरियट्टे एवं तेमाकम्मा-मरण-वइ-आणूपारण-पोगलपरियट्टे ।
- भगवती १२०४ तथा स्थानास ७५३६
( २ ) वैक्रिय गुगल परावर्तन (४) कार्मण- मुदगलपरावर्तन,
मनः- पुद्गलपरावर्तन (६) वचन-पुदगल परावर्तन ( ७ )
परावर्तन 1
('मोक्ष प्रकाश' ६१५ में इसका विस्तृत विवेचन है | )
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