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सुख-दुःखमय संसार १ क्वनिट्ठीरणानादः क्वचिदपि च हाहेति रुदितं. ___ क्वचिद् विद्वद्गोष्ठी क्वचिदपि मुरामत्तकलहः ।
विद रम्या रामा क्वचिदपि जराजर्जरतनु. न जाने संसारः क्रिममृतारयः कि विषमयः ।।
-सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृ. ६२ कहीं वीणा का नाद है तो कहीं हाहाकार रोदनमय है, कहीं यिद्वानों की गोष्टी है तो कही शराबियों का कलह है। कहीं सुन्दर नारियाँ हैं तो कहीं जर्जरत शारीर वालो बृद्धाएं हैं । अतः समझ में नहीं आता कि इस संसार में अमृतमय क्या है ? और विषमय क्या है ? तिलियाँ हैं फूल भी हैं, हैं कोकिलाएं गान भी हैं । इस गगन की छोह में मानो ! महल उद्यान भी हैं। पर जिन्हें कवि भूल बैठे, वे अभागे मनुज भी हैं। हैं समस्याएं, व्यथाए भूख है अपमान भी है।
-मिलिन्द ३ फल थोड़े हैं पात बहुत है, काम अल्प है बात बहुत है ।
प्यार लेश आधात बहुत है, यत्न स्वल्प व्याघात बहुत है। मंजिल में पग-पग पर देखा, विजय अल्प है हार बहुत है, सार स्वरूप निस्सार बहुत है, सुन्दर कम आकार बहुत है ।
-'पक्ष के पील' से