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________________ ११ १. अणते निलिए लोए, सासए न बिएस्सइ । संसार का स्वरूप १/४/६ यह लोकव्य की अपेक्षा से नित्य है, शाश्वत है एवं इसका कभी नाश नहीं होता । २. अनाविरेष संसारो, J नानागतिसमाश्रयः । पुद्गलानां परावर्ता अत्रानन्तास्तथागताः ॥ - सूत्रकृत सात प्रकार का पुद्गलपरावर्तन कहा है-(१) औदारिकन्पुद्गल परावर्तन (३) तेजस मुद्गल परावर्तन, (५) स्वासोच्छ्वास - योग चिन्दु ७० नरक आदि गतिरूप पर्यायों का आश्रय यह संसार अनादि है । इसमें अनन्त पुद्गलपरावर्तन व्यतीत हो चुके हैं। ३. सत्तविहे पोगलपरियट्टे पत्ते तं जहा ओरालिय मोग्गल परियटूटे बेडब्बिय-पोगलपरियट्टे एवं तेमाकम्मा-मरण-वइ-आणूपारण-पोगलपरियट्टे । - भगवती १२०४ तथा स्थानास ७५३६ ( २ ) वैक्रिय गुगल परावर्तन (४) कार्मण- मुदगलपरावर्तन, मनः- पुद्गलपरावर्तन (६) वचन-पुदगल परावर्तन ( ७ ) परावर्तन 1 ('मोक्ष प्रकाश' ६१५ में इसका विस्तृत विवेचन है | ) १५६
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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