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धक्तृत्वकला के बीज
जीवों ने नव स्थानों में संसार का अनुभव किया, कर रहे हैं एवं
कारेंगे-पृथ्वीकाय के रूप में यावत् पञ्चेन्द्रिय के रुप में । ४. लख चौरासी योनि में. गंगा बादर लाख !
बत्तीस लाख है बोलता, लख चौपन बिन नाक ।।'
१ चौरपसो लाख योनी के जीवों में पृथ्वी-अप-तेजस्-वायु-इन चारों के सात सात लाख ; प्रत्येक बनस्पति के दम लाख और साधारण वनस्पति के १४ लाख-ये ५२ लाग्य गंगे हैं अर्थात् जीभरहित हैं। शेष बत्तीस लाम्य बोलनेवाले हैं-जीभमाहित हैं। पूर्वोक्त ५२ लाख और द्वीन्द्रिय के दो लाख-ऐसे ५४ लास्त्र' नाकरहित हैं।