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समाधि १. समाधिर्नाम राग-द्वेपपरित्याग :। -सूत्रपांग चूणि ११२।२
राग हप का त्याग ही समात्रि है । २. कमलचित्त कम्गता समाधि ।
-विसुद्धिमग ३।२ कुगल (पवित्र) चित्त की एकाग्रता ही समाधि है। ३. मुखिनो वित्त समाधीयति ।। ___–विसुद्धिमाग ३।४
मुग्नी का चित्त एकाग्र होता है । ४. समाहितं वा चित्त थिरतरं होति। -विसुद्धिमगा ४१३६
समाहित (एकाग्र हुआ) चित्त ही पूर्ण स्थिरता को प्राप्त करता
है।
५. समाधिस्सऽग्गिसिहा व लेयसा,
तबो य पन्ना य जसो पवइ । -आचारात श्रु० २।१६।५ अग्नि-शिखा के समान प्रदीप्त एवं प्रकाशमान रहनेवाले समाधियुक्त गायक के तप प्रज्ञा और यश निरन्तर बढ़ते रहते हैं। लाभालाभेन मथिताः, समाधि नाधिगच्छन्ति ।
-थेरगाथा २१०२ जो लाभ या अलाभ से विचलित हो जाते है, वे समाधि को
प्राप्त नहीं कर सकते। ७. समाहिकारए गं तमेव समाहि पडिलभइ । -भगवती ७।१
समाधि देनेवाला समाधि पाता है ।
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