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भोजन की शुद्धि
१. आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धिः, सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः, स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः ।
___-छान्दोगोपनिषद् ७।२६३ आहार की (इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किये गये विषयों की) शुद्धि होने से सत्त्व-अन्तःकरण की शुद्धि होती है । उसमे स्थायी स्मृलि का लाभ होता है । स्मृति के लाभ से अर्थात् जागरूक अमूलज्ञान की
प्राप्ति से मनुष्य की द ग्रन्थियाँ खुल जाती हैं। २. आहार सुधारिये ! रवास्थ्य अपने-अाप भुधर जायेगा ।
...गांरीजी .३ कुपोज्येन दिनं नष्टम् । -सुभाषितरत्नखण्ड मंजूषा
कुभोजन करने से दिन को नष्ट हुआ समझो । ४. जिसो अन्न खावं, विसी ही उकार आवै ।
-राजस्थानी कहावत ५. जैसा खाबे अन्न, वेसा होवे मन्न ।
जैसा पीब पानी, बैसी बोले बानी।। -हिंदी कहावत दीपो हि भक्षयेद् ध्वान्तं, कज्जनं च प्रसूयते । यदन्नं भक्ष्यते नित्यं, जायते तादृशी प्रजाः ।।
--चाणक्यनीति ३ जो जैसा अन्न खाता है इसके वैसी ही संतान पैदा होती है। दीपक काले अरे का भक्षण करता है तो उगकी संतान भी काली (
वन्न होती है ।