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यवतृत्वकला के बीज
अपराल्ल में गिलरों ने, सायंकाल में दैत्यों-दानवों ने, तथा मंत्र्या दिन रात की संधि के समय यक्षों-राक्षसों ने भोजन किया है। इन सब भोजनबेलाओं का उल्लंघन करके रात्रि में भाजन करना
अभक्ष्य-भोजन है। ४. हन्नाभिपद्ममको व-श्चण्ड चिरपायतः । अता नक्तं न भोक्तव्य. मुक्ष्नजीवादनादपि ।
-योगशास्त्र ३१६० आयुर्वेद का अभिमत है कि शरीर में दो कमल होते हैं-हृदयकमल और नाभिकमल । सूर्यास्त हो जाने पर ये दोनों कमल संकुचित हो जाते हैं अतः रात्रि-भोजन निषिद्ध है । इस निषेध का दुरा रा कारण यह भी है कि रात्रि में पर्याप्त प्रकाश न होने मे छोटे-छोटे जीव भी खाने में आ जाते हैं। इसलिए रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए । अत्थंगयम्मि आइच्चे. पुरत्या य अगुग्गए । आहारमाइयं सव्वं, मशासा वि न पत्याए ।
-वशकालिक ८।२८ सूर्य के अस्त हो जाने पर और प्रातःकाल गूर्य के उदय न होने तक सब प्रकार के आहारादि की माधु मन में भी इच्छा न करे । रात्रि के समय यदि भोजन का जुद गार गाव नकी आ जाए तो थूक देना चाहिए । न वाकर वापिस-निगल जानेवाले साधु-साध्वी को गुरु वार्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
-निशीथ १०।३५ ७. मुर्य उदय हुआ जान कर साघु कदान आहार को यात्रक र
खाने लगे, फिर यदि पता लग जाए कि सूर्य उदय नहीं हुआ