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पांचवां भाग : तीसरा कोष्ठक
१५५ वे क्षीणमतिमानावरणीय कहलाते हैं यावत् वीर्यान्तराय के क्षय होन से सीणधीर्यान्तराम कहलाते हैं। जीवेणं भन्ते ! सिझमाणे कयामि आउए सिम्झइ ? गायमा ! जहन्नेगां साइरेगछवासाउए, उक्कोमेणं पुबकोडियाउए सिझइ ।
औपपातिकसूत्र सिद्धवर्णन भगवन् ! जीव किम आयु मे सिद्ध-मुक्त बन सकता है ? गौतम ! जनन्य माधिक आठ वर्ष में और उत्कृष्ट करो त्र को आयु में
सिद्ध बन सकता है । ६. बतीला अडयाला, सट्ठी बाबत्तरिय बोधन्वा । चुलसीई छिन्न वई य, दुर्राह्य अछुत्तरसयं च ।
-प्रतापना १ एक समय में अधिक गे अधिक कितने जीव सिद्ध हो सकते हैं ? इसके लिए बतलाया गया है कि यदि प्रति समय १-२-३ पावत ३२ जीव निरमा सिद्ध हों तो आठ समय तक हो सकते हैं। उसके बाद निस्चित रूप से अन्तर पड़ता है। सेतीस से अड़तालीस तक जीव निरन्तर सात समय, उनचास से साठ तक जीव निरन्तर छ: समय, इकसठ से बहत्तर तक जीव निरन्तर पांच समय, तिहत्तर से चौगसी सक जीव निरन्तर चार समय, पचासी से रिलयानजे तक जीव निरन्तर तीन समय तथा सतानवे से से एक को दो तक जीव निरन्तर दो समय तक सिद्ध हो सकते हैं । पिर निश्चित रूप में अन्तर पड़ता है। एक सौ तीन से लेकर एक मौ आठ तक जीब यदि सिद्ध हों तो केवल एक ही समय हो सकते हैं, अर्थात् एक समय' में १.३ मावत १.८ सिद्ध होने के बाद दूसरे समय अवश्य अन्तर पड़ता है। घो, तीन आदि समय तक निरन्तर उत्कृष्ट सिद्ध नहीं हो सकते।